बम का पता लगाने में निपुणता हासिल करना
रमेश जौरा द्वारा
वियना (आईपीएस) – एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में परमाणु विस्फोट का पता लगाने, तूफान या ज्वालामुखी की राख के बादलों को ट्रैक करने, भूकंप के केंद्र का पता लगाने, विशाल हिमशैलों पर नज़र रखने, समुद्री स्तनधारियों की गतिविधियों पर नज़र रखने और विमान दुर्घटनाओं का पता लगाने में की गई प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।
26 जून को समाप्त हुआ पांच दिवसीय ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी 2015 सम्मेलन’ (एसएनटी2015), व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन (सीटीबीटीओ) द्वारा आयोजित बहु-विषयी सम्मेलनों की श्रृंखला में पांचवां था। सीटीबीटीओ 1997 से ऑस्ट्रिया की राजधानी में आधारित है।
इस सम्मेलन में विश्व भर से 1100 से अधिक वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, राष्ट्रीय एजेंसियों के प्रतिनिधियों, स्वतंत्र शैक्षिक अनुसंधान संस्थानों और नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
एसएनटी2015 ने सीटीबीटीओ के सेंसर्स के एक महत्वपूर्ण अनुसन्धान की ओर ध्यान आकर्षित किया: 2013 में, चेल्याबिंस्क, रूस के ऊपर विस्फोट हुआ उल्का कम से कम एक सदी में पृथ्वी से टकराने वाला सबसे विशाल उल्का था।
प्रतिभागियों ने यह भी जाना कि जुलाई 2014 में माली में दुर्घटनाग्रस्त हुए एयर अल्जेरी के विमान, जो बुर्किना फ़ासो से अल्जीरिया जा रहा था, का पता भी कोटे डी आइवर स्थित सीटीबीटीओ के निगरानी केंद्र ने लगा लिया था, जबकि यह केंद्र उस स्थान से 960 किलोमीटर की दूरी पर था जहाँ विमान गिरा था।
एसएनटी2015 इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सीटीबीटीओ को व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) के प्रचार का दायित्व सौंपा हुआ है। यह संधि किसी के भी द्वारा और कहीं भी (थल, जल, वायु और ज़मीन के नीचे) किये गए परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबन्ध लगाती है। इसका लक्ष्य ऐसे विश्वसनीय उपकरण विकसित करना भी है जो प्रत्येक परमाणु विस्फ़ोट का पता लगा सकें।
इन उपकरणों में भूकंप संबंधी, जलीय-ध्वनिक, इंफ्रासाउंड (मानव कान द्वारा न सुनी जा सकने वाली ध्वनि), और रेडियोन्यूक्लाइड सेंसर शामिल हैं। वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों ने प्रस्तुतियों और पोस्टर में विस्तार से बताया है कि यह चार अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां कैसे काम करती हैं।
170 भूकंप केंद्र पृथ्वी की सतह के नीचे शॉकवेव्स पर नज़र रखते हैं। इन अधिकांश शॉकवेव्स का कारण भूकंप होते हैं। लेकिन इस प्रणाली ने मनुष्य द्वारा ख़ानों में किये गए विस्फोट या 2006, 2009 और 2013 में उत्तर कोरिया द्वारा घोषणा कर के किये गए परमाणु परीक्षणों का पता भी लगाया है।
सीटीबीटीओ के 11 जलीय-ध्वनिक केन्द्रों द्वारा समुद्रों में धवनि तरंगों को सुना जाता है। विस्फोट से उत्पन्न ध्वनि ध्वनि तरंगें पानी में बहुत दूर तक जाती हैं। पृथ्वी की सतह पर स्थित साठ इंफ्रासाउंड केंद्र बड़े विस्फोटों से उत्सर्जित अत्यंत कम आवृत्ति की धवनि तरंगों का भी पता लगा लेते हैं।
सीटीबीटीओ के 80 रेडियोन्यूक्लाइड केंद्र वातावरण में रेडियोधर्मी कणों को मापने का कार्य करते हैं; इनमें से 40 केंद्र भूमिगत विस्फोटों से उत्पन्न नोबल गैस, का भी पता लगाते हैं। नोबल गैस परमाणु विस्फोट का अकाट्य सबूत है। केवल यही मापन स्पष्ट संकेत दे सकते हैं कि अन्य माध्यमों द्वारा पता लगाए गए विस्फोट वास्तव में परमाणु विस्फोट थे या नहीं। सोलह प्रयोगशालाएं इन रेडियोन्यूक्लाइड केन्द्रों की सहायता करती हैं।
पूरा होने पर, सीटीबीटीओ की अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली (आईएमएस) में विश्व भर में फैले 337 केंद्र होंगे जो पृथ्वी ग्रह पर परमाणु विस्फोटों के संकेतों पर नज़र रखेंगे। वर्तमान में लगभग 90 केंद्र पूर्ण हो चुके हैं और काम कर रहे हैं।
सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण विषय था कार्य-क्षमता का इष्टतम उपयोग। सीटीबीटीओ के अंतरराष्ट्रीय डेटा सेंटर (आईडीसी) के निदेशक डब्ल्यू. रैंडी बेल के अनुसार अगले वर्ष में “हम जैसे जैसे आईएमएस और आईडीसी को जारी रखेंगे और उपयोग में लेंगे, कार्य-क्षमता के इष्टतम उपयोग का औचित्य बढ़ता जाएगा।”
पिछले 20 वर्षों में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने वैश्विक निगरानी प्रणाली में एक अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। सीटीबीटीओ के सदस्य देश इस प्रणाली द्वारा प्राप्त डेटा का उपयोग परीक्षण प्रतिबन्ध के अतिरिक्त अन्य उद्देश्यों के लिए भी कर सकते हैं। सभी केंद्र उपग्रह लिंक के माध्यम से वियना में आईडीसी से जुड़े हुए हैं।
सीटीबीटीओ के जन सूचना अधिकारी थॉमस मुतज़लबर्ग ने बताया, “ज़रूरी नहीं है कि हमारे केंद्र उसी देश में स्थित हों जहाँ घटना हुई है, वे बहुत दूर से भी घटना का पता लगा लेते हैं। उदाहरण के लिए, डीपीआरके (उत्तर कोरिया) द्वारा किये गए पिछले परमाणु परीक्षण का पता सुदूर पेरू स्थित केंद्र ने लगा लिया था।”
उन्होंने कहा, “हमारे 183 सदस्य देश कच्चे आंकड़ों (डेटा) और विश्लेषण के परिणाम, दोनों को अपने उपयोग में ले सकते हैं। अपने राष्ट्रीय डेटा केन्द्रों के माध्यम से, वे दोनों का अध्ययन करते हैं और पता लगाई गई घटनाओं की संभावित प्रकृति के बारे में अपने खुद के निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।” पापुआ न्यू गिनी और अर्जेंटीना के वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें ये डेटा “बेहद उपयोगी” लगा है।
डेटा साझा करने के महत्व पर जोर देते हुए सीटीबीटीओ के कार्यकारी सचिव, लसीना ज़ेर्बो ने नेचर (विज्ञान पत्रिका) को एक साक्षात्कार में कहा: “यदि आप अपना डेटा उपलब्ध कराते हैं तो अपने देश से बाहर के वैज्ञानिक समुदाय से जुड़ जाते हैं और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे विकास से परिचित रहते हैं। इससे न केवल सीटीबीटीओ की भूमिका और अधिक स्पष्ट होती है बल्कि यह हमें अलग ढंग से सोचने के लिए भी प्रेरित करता है। यदि आपको लगता है कि डेटा का कोई अन्य उपयोग भी हो सकता है, तो आप ज़रा व्यापक तस्वीर को देखें और आप पाएंगे कि आप कैसे अपने संसूचन को अधिक बेहतर बना सकते हैं।”
फोटो क्रेडिट:सीटीबीटीओ
सम्मेलन की शुरुआत में टिप्पणी करते हुए ज़ेर्बो ने कहा: “आप मुझे बार-बार यह कहते हुए सुनेंगे कि मैं इस संगठन को ले कर बहुत उत्साहित हूँ। आज मैं आप सब को देख कर, जो इस संगठन के बारे में मेरी तरह के विचार रखते हैं, उत्साहित होने के साथ-साथ बहुत ख़ुश हूँ। यह उत्साह शांति के लिए विज्ञान के उपयोग के लिए है। मुझे यह बात हमारे बच्चों के भविष्य के लिए आशान्वित करती है कि हमारे समय के सबसे अच्छे और प्रतिभाशाली वैज्ञानिक बम का पता लगाने की प्रणाली न कि बम को बेहतरीन बनाने के लिए एकत्र हुए हैं।”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने अपने सन्देश में कहा: “मज़बूत सत्यापन व्यवस्था और इसकी अत्याधुनिक तकनीक को देखते हुए, सीटीबीटी को टालने का अब कोई बहाना नहीं है।”
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के दक्षिण अफ्रीकी मंत्री नलेडी पंडोर ने कहा कि उनका देश सीटीबीटीओ का “एक प्रतिबद्ध और लगातार दृढ़ समर्थक है”। उन्होंने यह भी कहा: ” बीस वर्षों से दक्षिण अफ्रीका, अफ्रीका में परमाणु अप्रसार के मामले में अग्रणी है। हमने 1996 में अपने परमाणु शस्त्रागार को छोड़ दिया और पेलिंदाबा संधि पर हस्ताक्षर किये। यह संधि अफ्रीका को परमाणु हथियार मुक्त क्षेत्र के रूप में स्थापित करती है, यह क्षेत्र 2009 में अस्तित्व में आया।
वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुतियों के अलावा, चर्चा पैनल ने सीटीबीटी निगरानी समुदाय में विशेष रुचि के वर्तमान विषयों पर भी विचार-विमर्श किया। ऑन-साइट निरीक्षण (ओएसआई) में विज्ञान की भूमिका का भी ज़िक्र हुआ। लागू होने पर संधि में ऑन-साइट निरीक्षण भी शामिल हैं।
इस चर्चा को 2014 में जॉर्डन में हुए एकीकृत फील्ड अभ्यास (आईऍफ़ई14) के अनुभव का भी लाभ मिला। आईडीसी के निदेशक बेल ने बताया, “सीटीबीटीओ की ऑन-साइट निरीक्षण क्षमता संवर्धन के लिए आईऍफ़ई14 अब तक का सबसे बड़ा और सबसे व्यापक अभ्यास था।”
प्रतिभागियों को परमाणु सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने में नयी और उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रदत्त सुविधाओं के बारे में चर्चा सुनने का भी अवसर मिला। टेक्नोलॉजी फ़ॉर ग्लोबल सिक्योरिटी (टेक4जीएस) के सदस्यों ने अमेरिका के पूर्व रक्षा सचिव विलियम पैरी के साथ एक पैनल परिचर्चा में भी भाग लिया जिसका विषय था, ‘सिटीज़न नेटवर्क: तकनीकी नवाचार का वादा’।
पैरी ने कहा, “हम एक और हथियारों की दौड़ की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि यह अपरिवर्तनीय है। यह समय है कि हम रुकें और विचारें, इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करें और यह जानने की कोशिश करें कि कुछ न करने और हथियारों की एक नई दौड़ के बीच क्या कोई तीसरा विकल्प है।”
सम्मेलन का एक मुख्य बिंदु था सीटीबीटी का अकादमिक फोरम जो ‘सीटीबीटी को अकादमिक अनुबंधों से मज़बूत बनाने’ पर केंद्रित था। इस पर प्रतिष्ठित एमी अवार्ड विजेता बॉब फ्रये, जो डाक्यूमेंट्री और नेटवर्क समाचार कार्यक्रमों के निर्माता निर्देशक हैं, ने “नयी पीढ़ी के समालोचनात्मक विचारकों” को प्रेरित करने की आवश्यकता की वकालत की, जिससे हम एक ऐसे विश्व का निर्माण कर सकें जो परमाणु परीक्षणों और सामूहिक विनाश के हथियारों से मुक्त हो।
इस फोरम ने ऑस्ट्रिया, कनाडा, चीन, कोस्टा रिका, पाकिस्तान और रूस में शिक्षकों और प्रोफेसरों के नज़रिये से सीटीबीटी को पढ़ाने के प्रभावशाली शैक्षिक संसाधनों और अनुभवों का भी सिंहावलोकन करवाया।
विज्ञान और नीति को साथ लाने के उद्देश्य से फोरम में ‘नीति निर्माताओं के लिए तकनीकी शिक्षा और वैज्ञानिकों के लिए नीति शिक्षा’ पर भी चर्चा हुई जिसमें प्रख्यात विशेषज्ञों द्वारा भाग लिया गया। इनमें एक्रोनिम इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिसअर्मामेंट के कार्यकारी निदेशक रेबेका जॉनसन; जेम्स मार्टिन सेंटर फ़ॉर नॉन-प्रोलीफेरशन स्टडीज़ के निकोलाई सोकोव; मिडिलबरी इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंटरनेशनल स्टडीज़ के डलनोकी-वेरेस; सेंटर फ़ॉर सिक्योरिटी स्टडीज़, जॉर्जटाउन के एडवर्ड इफ्ट और ब्रिटिश कोलंबिया विश्विद्यालय के विज्ञान विभाग के मैट येडलिन शामिल थे।
वैज्ञानिक समुदाय में इस बात पर आम सहमति थी कि राजनयिकों और अन्य नीति निर्माताओं के प्रशिक्षण में सीटीबीटी के तकनीकी पहलुओं की जानकारी भी शामिल की जानी चाहिए और साथ ही वैज्ञानिक समुदाय में सीटीबीटी और व्यापक परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण नीति के मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ायी जानी चाहिए।
एक अन्य पैनल जिसमें सीटीबीटीओ के विदेशी संबंधों, प्रोटोकॉल और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मुखिया जीन डु प्रीज़, अमेरिकन एसोसिएशन फॉर दि एडवांसमेंट को साइंस के पीस कॉर्डेन, डबलिन इंस्टीट्यूट के थॉमस ब्लेक और फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की जेनिफर मैकबी शामिल थे अकादमिक समाज से बेहतर संबंध स्थापित करते हुए नागरिक समाज, युवा वर्ग और मीडिया को भी प्रभावशाली ढंग से जोड़ने के बारे में विचार किया।
एक पैनलिस्ट ने कहा, “प्रगति किश्तों में होती है, लेकिन अपने आप नहीं।” (आईपीएस | 30 जून 2015}
[वेलेंटीना गैसबैरीके सहयोग के साथ]