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परमाणु रोधी संकल्प पर ऑस्ट्रेलिया की ना पर छिड़ी बहस

नीना भंडारी द्वारा

सिडनी (आईडीएन) – अब जबकि 2016 ख़त्म होने वाला है, जो कि फुकुशीमा की पांचवीं वर्षगाँठ और चेर्नोबिल परमाणु आपदा की 30वीं वर्षगाँठ, सामूहिक विनाश इन हथियारों के विनाशकारी मानवतावादी और पर्यावरणीय परिणामों की एक निराशाजनक याद दिलाने वाला साल था, दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने का संकल्प पहले से भी अधिक मजबूत है।

संयुक्त राष्ट्र संकल्प A/C.1/71/L.41, जो परमाणु हथियारों के सम्पूर्ण उन्मूलन के लिए परमाणु हथियारों को रोक लगाने के लिए एक “कानूनी तरीके से बाध्यकारी साधन” आर बातचीत करने की जरूरत को उजागर करता है, जिसे परमाणु उत्तर कोरिया सहित 123 देशों के साथ 27 अक्टूबर 2016 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की पहली समिति के 71वें सत्र में अपनाया गया था जिन्होंने बहुपक्षीय परमाणु निरस्त्रीकरण बातचीत को आगे बढ़ाने के पक्ष में वोट किया गया था, 38 देशों ने उसके खिलाफ वोट किया और 16 अनुपस्थित रहे।

ऑस्ट्रेलिया जो कभी परमाणु निरस्त्रीकरण का एक चैम्पियन था, उसने इस संकल्प का विरोध करने का रास्ता चुना जबकि एशिया-प्रशांत महाद्वीप में उसके करीबी 26 पड़ोसियों ने अफ़्रीकी, लातिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों की तरह इसके पक्ष में वोट किया।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु हथियार उन्मूलन अभियान (आईसीएएन) ऑस्ट्रेलिया के अभियान निदेशक, टिम राइट का कहना है,” यदि ऑस्ट्रेलिया इस लम्बे समय से अटकी संधि का इसी तरह विरोध करता रहा तो इससे इस क्षेत्र में अन्य देशों में अलगाव की भावना पैदा होने का जोखिम है।बड़े अफ़सोस की बात है कि ऑस्ट्रेलिया, नैतिक रूप से जो सही और जरूरी है उसकी तरफदारी करने के बजाय, उसने कुछ गिने-चुने परमाणु हथियारों से लैस देशों और उन देशों के साथ खड़े होने का विकल्प चुन लिया है जो परमाणु हथियारों की दावेदारी को वैध मानते हैं।”

वह कहते हैं: “परमाणु निरस्त्रीकरण पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह को पटरी से उतारने की ऑस्ट्रेलिया की कोशिश एक असाधारण कदम थी और जिसका बहुत उल्टा असर पड़ा है। इससे एक अधिक स्पष्ट सिफारिश सामने आई है और परमाणु हथियारों को अवैध घोषित करने की संधि पर 2017 में बातचीत शुरू करने के अन्य देशों के संकल्प को मजबूती मिली।”

यह संकल्प तीन अंतर-सरकारी सम्मेलनों का पालन करता है, परमाणु हथियारों के मानवीय प्रभाव की जांच करता है, जिसका आयोजन 2013 और 2014 के दौरान नॉर्वे, मेक्सिको और ऑस्ट्रिया में किया गया था। इन सम्मेलनों ने गैर परमाणु देशों के लिए निरस्त्रीकरण में और अधिक मुखर भूमिका निभाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

ऑस्ट्रेलिया को अमेरिकी परमाणु हथियारों पर अपनी दावाकृत निर्भरता को तुरंत समाप्त करने का आह्वान करते हुए, राइट ने आईडीएन को बताया, “विस्तारित परमाणु प्रतिरोध की यह खतरनाक नीति, निरस्त्रीकरण को नजरअंदाज करती है और उसके प्रसार को बढ़ावा देती है। इससे अन्य देशों को एक सन्देश जाता है कि सामूहिक विनाश वाले ये हथियार वैध, आवश्यक और उपयोगी हैं। इस नीति का कोई औचित्य नहीं हो सकता है। हमारे तत्काल क्षेत्र में कोई अन्य देश, परमाणु हथियारों से सुरक्षा का दावा नहीं करता है।”

परमाणु हथियारों से लैस देश और सुरक्षा के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्तारित परमाणु प्रतिरोध का साथ देने वाले देश जैसे ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया ने इस संकल्प का विरोध किया था।

इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि न्यूजीलैंड ने इस संकल्प का समर्थन किया जो परमाणु हथियारों के मुद्दे पर अपने पिछले तीन दशक से अधिक समय से सामाजिक और कानूनी इतिहास के साथ एकरूप बना हुआ है। राइट कहते हैं, “ऑस्ट्रेलिया, जो कभी परमाणु निरस्त्रीकरण का एक समर्थक था, उसने हाल के वर्षों में इस मुद्दे पर आधारित सिद्धांत को पूरी तरह से छोड़ दिया है, जिससे सामूहिक विनाश वाले इन सबसे ख़राब हथियारों को लगातार हासिल करने और संभवतः इस्तेमाल करने का विरोध करने का हर मौका हाथ से निकलता जा रहा है।”

न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड इस क्षेत्र के ऐसे इसे देश हैं जो संभवतः न्यूयॉर्क में मार्च और जून 2017 के लिए अनुसूचित वार्ता सम्मेलनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

न्यूजीलैंड के परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण सांसदों के (पीएनएनडी), के पूर्व अध्यक्ष, मार्यन स्ट्रीट ने आईडीएन को बताया, “यह बड़ी हैरानी की बात है कि ऑस्ट्रेलिया ने संकल्प L41 का विरोध कर दिया।सिर्फ इस बात को छोड़कर इसकी और कोई तर्कसंगत व्याख्या नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ उनकी निष्ठां ने अन्य सभी बातों को पीछे छोड़ दिया है। ऑस्ट्रेलिया कभी भी परमाणु विरोधी आन्दोलन के आगे नहीं रहा है और इसलिए इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए जब इसने इस तरह वोट किया। एक रुढ़िवादी उदार सरकार के साथ, इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से साहस की कोई कमी नहीं है।”

34 एशिया-प्रशांत देशों में से, जिन्होंने इस मुद्दे पर वोट किया, सिर्फ चार देशों ने इसके खिलाफ वोट किया, जिनके नाम हैं ऑस्ट्रेलिया, जापान, माइक्रोनेशिया का संघबद्ध राज्य और दक्षिण कोरिया, और चार अन्य देश – चीन, भारत, पाकिस्तान और वानूअतु अनुपस्थित रहे।

इस तरह के सामरिक और संभावित दुर्घटनापूर्ण महत्व वाले मुद्दे पर इस तरह अपने नजदीकी पड़ोसियों से अलग कदम उठाना गैरजिम्मेदाराना लगता है।ऑस्ट्रेलया को एशिया-प्रशांत मंचों के साथ जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा चर्चा में शामिल होने में अपनी भरपूर ताकत लगनी चाहिए, न कि उनसे अलग होने में,” स्ट्रीट कहते हैं।

ऑस्ट्रेलिया ने रासायनिक और जैविक हथियारों, बारूदी सुरंगों और क्लस्टर हथियारों पर वैश्विक प्रतिबंध का समर्थन किया है। “ऑस्ट्रेलिया एक प्रभावी तरीका अपनाकर परमाणु हथियारों के उन्मूलन के प्रतिबद्ध है।हालाँकि, जब तक परमाणु हमले होते रहेंगे तब तक संयुक्त राज्य अमेरिका का विस्तारित परमाणु प्रतिरोध ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा हितों को पूरा करता है”, ऑस्ट्रेलिया के विदेशी मामले और व्यापार विभाग (डीएफएटी) के एक प्रवक्ता ने आईडीएन को बताया।

सिडनी आधारित लोवी इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी द्वारा 2016 के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिकी गठबंधन के लिए समर्थन नौ अंक नीचे गिर गया है: 71 प्रतिशत ऑस्ट्रेलियाई इस गठबंधन को ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा के लिए ‘बहुत’ या ‘काफी’ महत्वपूर्ण है जो 2007 से समर्थन का निकटतम स्तर था, लेकिन यह अभी भी उस साल के परिमाण से आठ अंक अधिक है।

ऑस्ट्रेलिया को लगता है कि इसे अपना प्रयास परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को मजबूत बनाने की दिशा में लगाना चाहिए जो वैश्विक निरस्त्रीकरण और अप्रसार व्यवस्था का आधार, और इसे अपनी प्रतिबद्धताओं को लागू करना चाहिए जैसा कि 2010 एनपीटी समीक्षा सम्मलेन की कार्य योजना में सहमति दी गई थी।

अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर्यावरण के सम्बन्ध के बिना और परमाणु हथियार्यों से लैस देशों की भागीदारी के बिना “एक परमाणु हथियार” प्रतिबंध संधि, परमाणु हथियारों को समाप्त करने में अप्रभावी होगा”, डीएफएटी प्रवक्ता ने कहा।

जबकि एनपीटी, परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए और निरस्त्रीकरण वार्ता के लिए आधार के रूप में जरूरी बना हुआ है, राइट कहते हैं, “परमाणु हथियारों पर रोक लगाने वाली संधि, एनपीटी के अनुच्छेद VI को लागू करने के लिए तैयार किया गया एक उपाय है। निषेध संधि, परमाणु हथियारों को नियंत्रित करने वाली मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था में खामियों को बंद कर देगा। यह बिना किसी संदेह के साफ़ हो जाएगा कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करना, परीक्षण करना, बनाना या भंडार करना किसी देश के लिए गैरकानूनी है।”

राइट कहते हैं: “यह बहुत चिंता का विषय है कि ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य प्रो-परमाणु हथियार देशों ने एनपीटी के लिए अपना समर्थन छोड़ दिया है। वे परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए बातचीत जारी रखने के लिए संधि के अनुच्छेद VI के तहत अपने दायित्व का पालन करने से इंकार कर रहे हैं।सभी 191 स्टेट पार्टियों ने “परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए और निर्धारित तारीख से पहले ही परमाणु हथियारों की दौड़ को रोकने से संबंधित प्रभावी उपायों पर सद्भावना के साथ बातचीत जारी रखने” के लिए अनुच्छेद 6 में प्रतिबद्धता की है”।

सभी 191 स्टेट पार्टियों ने “परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए और निर्धारित तारीख से पहले ही परमाणु हथियारों की दौड़ को रोकने से संबंधित प्रभावी उपायों पर सद्भावना के साथ बातचीत जारी रखने” के लिए अनुच्छेद 6 में प्रतिबद्धता की है”।

“1996 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने सलाह दी कि उनका दायित्व है कि वे इन वार्ताओं को एक निष्कर्ष पर ले जाएं। संकल्प L.41 इस दायित्व का पालन करता है और इस पर व्यावहारिक अभिव्यक्ति देने का प्रयास करता है,” ये कहना है कैनबरा में ऑस्ट्रेलियन नैशनल यूनिवर्सिटी में क्रॉफोर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी, परमाणु अप्रसार और निरस्त्रीकरण केंद्र के निदेशक रमेश ठाकुर का।

पांच में से चार परमाणु हथियार देश, जिन्होंने एनपीटी पर हस्ताक्षर किया था, फ़्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका, उन्होंने इजराइल, एक गैर एनपीटी परमाणु शक्ति, के साथ इस संकल्प के विरोध में वोट किया। चीन, जिसके पास लगभग 260 परमाणु हथियार हैं, भारत जिसके पास 100-120 हथियार और पाकिस्तान जिसके पास 110-130 हथियार हैं, इसमें अनुपस्थित रहें।

ठाकुर का कहना है, “खुद इसके द्वारा एक कानूनी परमाणु प्रतिबंध संधि परमाणु निरस्त्रीकरण नहीं ला सकता है लेकिन यह फ्लैगिंग ध्वजा संवेग को पुनर्जीवित करने और परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध से सम्पूर्ण उन्मूलन और परमाणु हथियारों के बुनियादी ढाँचे को गिराने तक का सफ़र तय करने के लिए प्रयासों को नई दिशा देने के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व हो सकता है।”

1973 में परमाणु एनपीटी के अनुसमर्थन के बाद से, ऑस्ट्रेलिया इस वैश्विक परमाणु मुद्दे पर कमोबेश एक द्विदलीय दृष्टिकोण अपनाए हुए है। जैसा कि लेबर पार्टी सीनेटर और शैडो विदेशी मंत्री पेनी वोंग एक मीडिया रिलीज में कहा, “लेबर अप्रसार और निरस्त्रीकरण की दिशा में प्रभावी और व्यवहार्य कार्रवाई का समर्थन करता है, और इन उद्देश्यों को पूरा करने के रास्ते पर सक्रिय रूप से आगे बढ़ता रहेगा।लेबर निरस्त्रीकरण की गति के साथ अंतर्राष्ट्रीय कुंठाओं का साझा करता है और हम लोग परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध बने हुए हैं।”

ऑस्ट्रेलियन ग्रीन्स ने यह व्याख्या करने के लिए विदेशी मंत्री जुली बिशप को भी बुलाया है कि ऑस्ट्रेलिया ने इस संकल्प के विरोध में वोट क्यों किया।

“ऑस्ट्रेलिया को परमाणु हथियारों को समाप्त करने के लिए एक सम्मलेन के लिए यूएनजीए में इस पहल का समर्थन करना चाहिए। ऑस्ट्रेलिया को बदली हुई परिस्थितियों को दर्शाने के लिए अपनी विदेशी नीति में बदलाव करना चाहिए और अगले साल जनवरी में श्री डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति का पदभार संभालने से पहले ऑस्ट्रेलिया के हितों को स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ाना चाहिए। इसमें यूएन चार्टर और दक्षिण-पूर्व एशिया में मैत्री और सहयोग की संधि के अनाक्रमण धाराओं का पालन करना शामिल है”, पूर्व ऑस्ट्रेलियाई राजनयिक, डॉ एलिसन ब्रोइनोसकी ने आईडीएन को बताया।[आईडीएन-इनडेप्थन्यूज – 15 दिसम्बर 2016]

फोटो: संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम समिति का सत्र चल रहा है। क्रेडिट: आईसीएएन । 28 अक्टूबर 2016

आईडीएन इंटरनेशनल प्रेस सिंडिकेट का एक फ्लैगशिप है।

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